| कवयित्री – कंचन मखीजा | चेतना का सूर्य ले के चल.. प्राणों में तेरे अग्नि का वास है। पथिक तेरी विजय को, दृढ़ संकल्प का विश्वास है। विस्मरण हुआ निज शक्ति को, आज दिव्यता का!..एक क्षण..स्पंदन.. स्मरण.. बोध मात्र कराना है। मुट्ठी भर अंधेरों की औकात क्या.. उजालों को निगलने की! स्वतः मिट जाऐंगे!Continue reading “सूर्य बोध”
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Through the window
| Poet – Deepti Agrawal | Looking through the window Eye catches the rainbow Fluttering of a birds wing Helps the choir sing Mystic air bubbles around Preaching soul heals the wound Wandering footsteps trod the path Droplets shine through the cloth In search of truth on the meadow Looking through the window
ग़ज़ल
| कवि– डॉ राम गोपाल भारतीय | मत कहो दुनिया में बस अंधेर है आएंगी खुशियां अभी कुछ देर है जो तनी भृकुटि नियति की भी अभी आदमी के कर्म का ही फेर है शक्तियों का दंभ यदि टूटा है तो ये विवश जन की करुण सी टेर है चांद सूरज जीतकर बैठा जहां आदमीContinue reading “ग़ज़ल”
नारी जीवन (एक दृष्टिकोण)
| लेखिका – निवेदिता चक्रवर्ती | नारी जीवन के बारे में यूँ तो बहुत कुछ लिखा गया है। हमारा अधिकांशतः साहित्य नारी के ऊपर होने वाले अत्याचारों और नारी -प्रताड़ना से भरा हुआ है। नारी को ” बेचारी ” का स्टैम्प बहुत स्वच्छंद तरीके से लगाया गया है। मेरा नारी जीवन के बारे में कुछContinue reading “नारी जीवन (एक दृष्टिकोण)”
The Road to Accepting Yourself: The Secret to a Better World
| Writer – Akshita Chauhan | Since the origin of mankind, competition in every field is evident. It has spread from strength and power, to beauty and elegance. Beauty, an aspect that was considered to be calm and soft, is now a battlefield that has given rise to demons like body shaming. Such demons prevailContinue reading “The Road to Accepting Yourself: The Secret to a Better World”
वक़्त
| कवि– राकेश | कुछ अहसास छूट गये हैं तुम्हारे शहर में ज़रा सम्भाल लेना ले जाऊँगा कभी आकर जल्दी में अक्सर ऐसा हो जाता है ना कुछ सामान छूट ही जाता है अक्सर ज़रूरी चीज़ें ही भूलता है इंसान …. देखो ना, सलाम भूल गया ! वहीं मिलेगा एक हिस्सा तुम्हारे घर के अन्दरContinue reading “वक़्त”
माँ
| कवि – डॉ.अनिल शर्मा ‘अनिल ‘ | माँ तो केवल माँ होती है। माँ के जैसा कोई न दूजा, जो निज सुख बच्चों पर वारे। हर दुख,विपदाओं को सहती, फिर भी कभी न हिम्मत हारे।। बच्चों के भविष्य की खातिर, संस्कार के बीज बोती है। माँ तो केवल माँ होती है। लाड़ दुलार लुटातीContinue reading “माँ”
बोगनवेलिया
| कवयित्री- मौसमी चंद्रा | पुरुष चाहता है स्त्री में गुलाब की खूबसूरती लेकिन वे चाहतीं हैं बनना बोगनवेलिया …! एक्स्ट्रा केअर एक्स्ट्रा अटेंशन से कोसों दूर … हर माहौल हर मिट्टी में जैसे पनपती, बढ़ती है बोगनवेलिया..! और बदले में देती है खूबसूरत लदे फूल.., सबसे विलक्षण है कोई इसे नहीं छूता ना येContinue reading “बोगनवेलिया”
मनके
| कवयित्री – R.goldenink (राखी) | हर बार बिखरे शब्दों को जोड़ने का ख्याल आता है ना सुर ही ध्यान है ना स्वरों का ही ज्ञान है ना छंदबद्धता न ही लयबद्धता तोड़ सारे नियम उद्दण्डता से जीवन के उतार-चढ़ाव को शब्दों में पिरो कर एक मनका यहीं पास से एक दूर कहीं से चुनकरContinue reading “मनके”
शर्मीले मोती
| कवि – विनय विक्रम सिंह | मैं तुमको ढूँढ़ लेता हूँ, पलक की कोर पे अक्सर। पिघल मिलती हो मोती सी, सुबह को देखते अक्सर।१। अबोले बोल सी गुपचुप, मुझे छूती हो सावन सी। किलक उठते हैं मन अंकुर, बरसती रात में अक्सर।२। चहक उठती हैं दीवारें, झरोखे खोल लेती हैं। पसारे मौन सीContinue reading “शर्मीले मोती”
