| कवयित्री – कंचन मखीजा | चेतना का सूर्य ले के चल.. प्राणों में तेरे अग्नि का वास है। पथिक तेरी विजय को, दृढ़ संकल्प का विश्वास है। विस्मरण हुआ निज शक्ति को, आज दिव्यता का!..एक क्षण..स्पंदन.. स्मरण.. बोध मात्र कराना है। मुट्ठी भर अंधेरों की औकात क्या.. उजालों को निगलने की! स्वतः मिट जाऐंगे!Continue reading “सूर्य बोध”