| कवि– डॉ राम गोपाल भारतीय |

मत कहो दुनिया में बस अंधेर है
आएंगी खुशियां अभी कुछ देर है
जो तनी भृकुटि नियति की भी अभी
आदमी के कर्म का ही फेर है
शक्तियों का दंभ यदि टूटा है तो
ये विवश जन की करुण सी टेर है
चांद सूरज जीतकर बैठा जहां
आदमी ,परमाणुओं का ढेर है
जो तुम्हारे मन को आह्लादित करे
वो किसी अच्छी ग़ज़ल का शेर है
वाह कितनी खुबसूरती से आपने अपनी बात कह दी। बहुत खूब।
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Kya baat h! 👍🏻 boht khoob 👌🏻
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Bahut saral shabdo Mai adbhud gazal
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This is great 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻 Waah kya baat
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Very beautiful and positive poetry….🙏
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अनु गूंज पत्रिका एक अभिनव प्रयोग।दूरस्थ साहित्य को ऑन लाइन पढ़ना एक सुखद अनुभव होगा।यह वेब पत्रिका के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा।इसके लिए इस ग्रुप की संचालिका समूह निवेदिता जी,शिवली चक्रवर्ती जी,सरिता जी आदि टीम के सभी सदस्यों सदस्याओं को हार्दिक बधाई और साधुवाद।
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उम्मीदों का खुशहाल नज़ारा
दिखाती है ग़ज़ल
सबेरे की रोशनी का सूरज
उगाती है ग़ज़ल
हौसले सबके आगे पथ पर
ले जाती है ग़ज़ल।
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