| कवि – विनय विक्रम सिंह | मैं तुमको ढूँढ़ लेता हूँ, पलक की कोर पे अक्सर। पिघल मिलती हो मोती सी, सुबह को देखते अक्सर।१। अबोले बोल सी गुपचुप, मुझे छूती हो सावन सी। किलक उठते हैं मन अंकुर, बरसती रात में अक्सर।२। चहक उठती हैं दीवारें, झरोखे खोल लेती हैं। पसारे मौन सीContinue reading “शर्मीले मोती”
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विकलाँग
| लेखक- मोहित अग्रवाल | आह! कितना चुभता है न, ये शब्द विकलाँग, जाने क्यों ये शब्द मुझे हर बार अपने बेचारगी और बेबसी का अहसास करा जाता है । जाने क्यों ये शब्द मुझे हर बार एक लाचारी का अहसास करा जाता है, किसने बनाया ये शब्द? हमने! हाँ हमने और आपने ही तोContinue reading “विकलाँग”
हिन्दी फिल्मों में गीत लेखन का इतिहास व गीतकारों की भूमिका
| लेखक – भूपेन्द्र | हिन्दुस्तानी फिल्मों में जब से बोलते चलचित्र का दौर आरम्भ हुआ, तब से पार्श्वगीत फिल्मों के एक अभिन्न अंग बन के उभर आये । सबसे पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ जो 1931 में प्रदर्शित हुई, उसमे 7 गाने थे। उसके तुरंत बाद ‘ शिरीं फर्हाद’ आयी जिसमे 42 गाने थे,Continue reading “हिन्दी फिल्मों में गीत लेखन का इतिहास व गीतकारों की भूमिका”
बोल कर तो देखो
| लेखक – विजय रुस्तगी | यह वर्ष 1983 की बात है, जब मैं बी.एच.ई.एल. दिल्ली में कार्यरत था। यह भारत सरकार की नव-रत्न कंपनियों में से एक है और अपनी दक्ष कार्य प्रणाली के लिए जानी जाती है । निर्देशक वित्त बहुत ही सख्त स्वभाव के थे । सभी कर्मचारी उनसे भय खाते थे। यहContinue reading “बोल कर तो देखो”
