ग़ज़ल

| कवि– डॉ राम गोपाल भारतीय |

मत कहो दुनिया में बस अंधेर है

आएंगी खुशियां अभी कुछ देर है

जो तनी भृकुटि नियति की भी अभी

आदमी के कर्म का ही फेर है 

शक्तियों का दंभ यदि टूटा है तो 

ये विवश जन की करुण  सी टेर है

चांद सूरज जीतकर बैठा जहां

आदमी ,परमाणुओं का ढेर है 

जो तुम्हारे मन को आह्लादित करे

वो किसी अच्छी ग़ज़ल का शेर है


7 thoughts on “ग़ज़ल

  1. अनु गूंज पत्रिका एक अभिनव प्रयोग।दूरस्थ साहित्य को ऑन लाइन पढ़ना एक सुखद अनुभव होगा।यह वेब पत्रिका के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा।इसके लिए इस ग्रुप की संचालिका समूह निवेदिता जी,शिवली चक्रवर्ती जी,सरिता जी आदि टीम के सभी सदस्यों सदस्याओं को हार्दिक बधाई और साधुवाद।

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