वक़्त

| कवि– राकेश |

कुछ अहसास छूट गये हैं

तुम्हारे शहर में

ज़रा सम्भाल लेना

ले जाऊँगा कभी आकर

जल्दी में अक्सर

ऐसा हो जाता है ना

कुछ सामान छूट ही जाता है

अक्सर ज़रूरी चीज़ें ही

भूलता है इंसान ….

देखो ना,

सलाम भूल गया !

वहीं मिलेगा

एक हिस्सा तुम्हारे

घर के अन्दर

बाक़ी दहलीज़ के पार

वहीं बीच में अटका होगा

वैसे तो अच्छा ही हुआ

अपने साथ ले आता

तो रास्ते में कहीं खो देता

तुम्हारे पास महफ़ूज़ रहेगा

बाक़ी वक़्त पर छोड़ देते हैं….

एक आलिंगन भी मिलेगा तुम्हें

तुम्हारे घर का वो जीना ,

जो आँगन से छत पर जाता है

उसके नीचे धूप नहीं पहुँच पाती

ठंडी छाया रहती है

उसी छाया में भूला हूँ

या यह कह लो

हिम्मत ही नहीं हुई उठाने की

हाँ , वहीं है, रख लेना।

सोचा था …

तुम्हारी थोड़ी सी ख़ुशबू भी उठा लूँगा

बग़ैर बतलाये !

दीवानख़ाने के तकिये पर

मिलेगी वो तुम्हें

हाँ , वही जिस पर तुम अक्सर

टेक लगा कर बैठती हो

एक दिन आँख लग गयी थी तुम्हारी

तभी चुरायी थी मैंने

अब बतला रहा हूँ

चुरा कर उसी तकिये के पीछे

छिपा दी थी

मिल जाये तो सम्भाल लेना

बाक़ी वक़्त पर छोड़ देते हैं …..

लफ़्ज़ मत ढूँढना

सब सम्भाल कर रख लिये थे

जिस बस्ते में क़िस्से बन्द किये थे

उसी की साइड वाली पॉकेट में

हिफ़ाज़त से रख लिये थे

मैं ले आया हूँ अपने साथ

क़िस्से ,कुछ हक़ीक़त

ज़्यादातर ख़याली ……

वैसे तो ,

एक रूँधी हुई सिसकी भी रह गयी है

उसे लाने की बहुत कोशिश की मैंने

टोकरी में ज़बरदस्ती भर भी दी थी

मगर चौक तक आते

छलक कर गिर पड़ी

अब नहीं सम्भाल पाया तो क्या करूँ ?

तुम तो जानती हो ना

किस तरह सब भर लेता हूँ मैं

फिर ज़्यादा हो जाता है जब

तब हमेशा छलक जाता है

तुम ढूँढने मत जाना

मैं नहीं चाहता

तुम अपने पास रखो

उसकी ज़रूरत भी

नहीं पड़ेगी अब…शायद

अच्छा ठीक है ,

कुछ और याद आयेगा

तो इत्तला कर दूँगा तुम्हें

बाक़ी वक़्त पर छोड़ देते हैं …..


7 thoughts on “वक़्त

  1. सुंदर कविता। बहुत दिलचस्प शीर्षक। इस कविता का सुंदर प्रवाह।

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  2. अति भावपूर्ण कविता। एक एक लम्हा, एक एक भाव कितनी बारीकी से अभिव्यक्त किया है आप ने राकेश जी। विशेष रूप से रुंधी सिसकी जो छलक गई। वाह कहूं या आह! शुभकामनाएं।

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  3. Bahut hi marm-sparshi kavita… behad rachnatmak aur komal, ki yun lag rha tha ki agar jaldi se padh lo to shayad kavita kahin toot hi jaae..
    itna thehraav aur sanjidapan.. avismaraneey adbhut!

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  4. बहुत ही सुंदर और प्यारी रचना, अंत में एक टीस छोड़ कर जाती है। Rakesh Gulati जी आपको बहुत साधुवाद इस कविता के लिए।

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  5. बहुत ही सुन्दर चित्रण करा है आपने अपने शब्दों से। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे में खुद जिवंत देख रही हूँ एक चलचित्र की तरह।

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  6. सच ही कहा है आपने..👍.. हमारी ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा कीमती होती हैं यादें और एहसास..🥰.. जिसे सारी दुनिया की दौलत मिलाकर भी नहीं ख़रीद सकते….🌹🌹

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