बोगनवेलिया

| कवयित्री- मौसमी चंद्रा |

पुरुष चाहता है स्त्री में

गुलाब की खूबसूरती

लेकिन वे चाहतीं हैं बनना 

बोगनवेलिया …!

एक्स्ट्रा केअर

एक्स्ट्रा अटेंशन 

से कोसों दूर …

हर माहौल हर मिट्टी में

जैसे पनपती, बढ़ती है

बोगनवेलिया..!

और बदले में देती है

खूबसूरत लदे फूल..,

सबसे विलक्षण है

 कोई इसे नहीं छूता

ना ये ग्रास बनती

किसी जानवर का..!

कहीं भी उग आती हैं ये

बोगनवेलिया..!

इसकी लताएँ बढ़ें तो

कर लेती हैं आवृत्त घने पेडों को,

आच्छादित कर देती हैं उसकी 

एक एक पत्तियां..

और जब फैलती हैं भू पर

तो रेंग कर विस्तार कर लेती है

अपना अस्तित्व…!

स्त्री चाहती है बनना एक

बोगनवेलिया…!

हर कष्ट से बचाकर 

खुद ढाल बनकर

समेट लेना चाहती है निलय को

अपने अंक में…!

और बन जाना चाहती है एक

बोगनवेलिया…!


8 thoughts on “बोगनवेलिया

  1. नारी का जीवन बोगनवेलिया सा ही होता है, मन को स्पर्श करती है आपकी रचना ❤️

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  2. एक नारी होने के नाते अच्छे से समझ सकती हूँ क्या है नाता बौगंविलिया और नारी का। खूबसूरत प्रस्तुति ।

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