माँ

| कवि – डॉ.अनिल शर्मा ‘अनिल ‘ |

माँ तो केवल माँ होती है।

  माँ के जैसा कोई न दूजा,

जो निज सुख बच्चों पर वारे।

हर दुख,विपदाओं को सहती,

फिर भी कभी न हिम्मत हारे।।

बच्चों के भविष्य की खातिर,

संस्कार के बीज बोती है।

  माँ तो केवल माँ होती है।

लाड़ दुलार लुटाती अतुलित,

स्नेह सिंधु में माँ नहलाती।

तनिक वेदना हो बालक को,

तो माँ भी कुछ चैन न पाती।।

चोट लगे जब बालक के मन,

आंखें तो माँ की रोती हैं।

  माँ तो केवल माँ होती है।

  माँ की ममता पाने के हित,

परमपिता भी आये धरा पर।

सुखद होगा माँ के दुलार का,

खेल कौशल्या-जसुमति के घर।।

बाल सुलभ क्रीड़ाएं इनकी,

माताओं के मन मोहती हैं।

  माँ तो केवल माँ होती है।

  माँ के त्याग और ममता की,

जान नहीं सकते सीमाएं।

बालक के हित बने मोम सी,

और कभी कठोर बन जाएं।।

  माँ के जीवन की सब श्वासें,

बच्चों के ही हित होती हैं।

  माँ तो केवल माँ होती है।


10 thoughts on “माँ

  1. बहुत ही सुंदर रचना!! मातृ दिवस की बहुत शुभकामनाएं आपको 🙏🏻

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  2. सत्य कहा आपने अपनी सुन्दर रचना के द्वारा।
    माँ तो केवल माँ होती है… 👌

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