दिशा

कवयित्री – श्रीमती सुनन्दापट्टनायक जाना |

पृथ्वी जब करवट बदले
प्रकृति तब दिशा बन जाये
कमल अपनी जगह स्तब्ध स्थिर
संतोष के ठन्डे स्पर्श से
सूरज की हर पल बदलती
दिशा को निहारे।
प्यार मिले तो धर्म
ना मिले इच्छा।
आसमान सा विशाल सुदीर्घ
आँसू जहाँ बहे
संतोष की परिभाषा लिए
जज़्बात की आह के बिना
खो जाऊँ मैं तुम्हारी बाँहों में
या फिर दफ़्न हो जाऊँ
तुम्हारे वजूद में
बनकर निश्छल कैदी
प्यार मिले तो कृपा
ना मिले तो स्वर्ग ।

3 thoughts on “दिशा

  1. वाह बहुत खूब सुंदर कविता प्यार मिले तो कृपा, ना मिले तो स्वर्ग

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