| कवयित्री – सुलोचना पंवार |

जहाँ वसुधा को माता कहते, गऊ माता को करें प्रणाम,
गुरू को दें दर्जा ईश्वर का, मात-पिता भी हैं भगवान
ये है मेरा हिंदुस्तान।
प्रहरी जिसका बना हिमालय, सागर देता चरण पखार
वेद-पुराणों की जननी जो प्रथम सभ्यता की पहचान
ये है मेरा हिंदुस्तान।
अतिथि को जहाँ देव मानकर दिल से देते हैं सत्कार
सिद्धांतों से नाता अपना मंगल ग्रह पर भी अधिकार
ये है मेरा हिंदुस्तान।
छह ऋतुओं की छटा निराली हिंदी जिसकी है पहचान
ऋषि दधिची, रंतिदेव नृप, हरीश्चंद्र से हुए महान
ये है मेरा हिंदुस्तान।
नया दौर संस्कृति पुरानी विश्व गुरू की छवि महान
युवा विवेकानंद बने यहाँ और कलाम सा ज्ञान महान
ये है मेरा हिंदुस्तान।
राणा जैसा साहस हममें लक्ष्मीबाई सा बलिदान
मातृभूमि पर मिट जाते हैं हँसते-हँसते वीर जवान
ये है मेरा हिंदुस्तान
जननी तो केवल बचपन में अपनी गोद खिलाती है
मात्रभूमि तो जीवनभर क्या मरने पर भी लेती थाम
ये है मेरा हिंदुस्तान।
प्रात: काल पहले उठकर तुम मातृभूमि को करो प्रणाम
तत्पश्चात मात-पिता गुरू का फिर ले ईश्वर का तू नाम
ये है मेरा हिंदुस्तान।